महिला उद्यमी शेख रजिया के प्रयासों ने बदली बस्तर की महुआ लड्डू की छवि। माइक्रो बायोलॉजी में एमएससी और रामकृष्ण शारदा सेवाश्रम में शोधकर्ता के रूप में कार्यरत शेख रजिया का मानना है कि महुआ केवल मादक पेय नहीं है, बल्कि इसका इस्तेमाल ऊर्जा और पोषण के लिए उचित तरीके से किया जा सकता है। साथ ही उन्हें बस्तर में कुपोषण का शिकार होते लोगों की भी फ़िक्र थी । वे उनके लिए भी कुछ करना चाहती थीं और अपनी रिसर्च में उन्हें इन सब का एक ही ज़रिया नज़र आया, ‘महुआ लड्डू।

‘महुआ लड्डू सूखा भुना हुआ महुआ, गुड़, जीरा, सूखे अदरक, लौंग, घी आदि से बनता है। इसमें कैरोटीन, एस्कॉर्बिक एसिड, थाइमिन, रिबोफ्लाविन, नियासिन, फोलिक एसिड, बायोटिन और इनॉसिटॉल खनिज पाए जाते हैं। महुआ लड्डू की यात्रा रामकृष्ण शारदा सेवाश्रम, जगदलपुर के साथ एक तकनीकी रूप से संचालित कार्यक्रम के द्वारा बस्तर की आदिवासी महिलाओं के एकीकृत विकास और सुरक्षित मातृत्व की पहल के तहत शुरू हुई । इसके पीछे का मुख्य विचार पोषण स्तर में सुधार, ऊर्जा व्यय को कम करना और गर्भवती महिलाओं और किशोर लड़कियों के सॉफ्ट कौशल विकास के तहत आजीविका के विकल्प का विकास करना था।

Bastar Mahua Laddu

शेख रजिया इस दिशा में और प्रकाश डालते हुए बताती हैं कि वे लगातार जैव प्रौद्योगिकी प्रयोगशाला में इसकी गुणवत्ता, गुणों और पोषण मूल्यों में सुधार करने पर काम कर रहे हैं। इसके साथ ही वे अन्य सेल्फ हेल्प ग्रुप्स को भी प्रशिक्षण दे रहे हैं। लोगों द्वारा उत्पाद को बेहद सराहना मिली है और उन्होंने इसके लिए हर जगह बड़ी मांग भी देखी है । वर्तमान में वे गांव समुदाय द्वारा आयोजित मेलों के माध्यम से इसे बेच रहे हैं । जो लोग लड्डू बना रहे हैं, वो इसे खा भी रहे हैं। जब उन्होंने उनकी और उनके बच्चों की चिकित्सकीय जांच की तो सभी तंदरुस्त मिले और सब में हीमोग्लोबिन और वजन का स्तर बढ़ा हुआ पाया । भविष्य में वे पूरे बस्तर में कुपोषण के समाधान के रूप में इस लड्डू को बढ़ावा देने की योजना बना रहे हैं। जिला पंचायत, जिला तहसील कार्यालय, नाबार्ड आदि सरकारी एजेंसियों की सहायता से स्व सहायता समूहों कोइसकी मशीनरी प्रदान करने की योजना है ।