शक्कर उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए राज्य में गन्ने की खेती को प्रोत्साहन दिया जा रहा है। कई शक्कर कारखाने भी स्थापित हुए, लेकिन पानी की कमी और अधिक रकबा उपयोग होने की वजह से योजना सफल नहीं हो पा रही है। ऐसे में स्टीविया की खेती छत्तीसगढ़ में मिठास का नया विकल्प बन सकती है। एक रिपोर्ट के अनुसार यदि गन्ने की जगह वैकल्पिक तौर पर स्टीविया की खेती की जाए तो करीब 4.17 मिलियन हेक्टेयर भूमि अन्य फसलों के काम आ सकती है। साथ ही सिंचाई जल की भी बड़ी बचत होगी, क्योंकि स्टीविया के उत्पादन में गन्ने के मुकाबले सिर्फ 1 फीसद पानी की जरूरत होती है। प्रशासन ने खाद्य व पेय पदार्थ में स्टीविया के प्रयोग की अनुमती दे दी है और इसी के साथ राज्य के कोंडागांव में देश का पहला स्टीविया शुगर प्लांट भी स्थापित हो रहा है।

प्रायोगिक खेती में मिली बड़ी सफलता
प्रायोगिक तौर पर शुरू की गई स्टीविया की खेती ने यहां के किसानों को अब अंतरराष्ट्रीय पहचान भी दिला रही है। दरअसल, कोंडागांव के किसानों ने समूह बनाकर स्टीविया की खेती शुरू की। किसानों के इस अनोखे प्रयोग को अब भारत सरकार के उपक्रम सीएसआइआर (काउंसिल ऑफ सांइटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च) ने भी मान्यता दे दी है। बहुत जल्द पालमपुर स्थित हिमालय जैवसंपदा प्रौद्योगिकी संस्थान के सहयोग से कोंडागांव में मीठी तुलसी की पत्ती से शक्कर बनाने का निजी कारखाना भी शुरू होने जा रहा है। यह देश का ऐसा पहला कारखाना होगा जहां मीठी तुलसी से शुगर फ्री शक्कर बनेगी।

बस्तर में एक हजार एकड़ में हो रही खेती
बस्तर में एक हजार एकड़ में इसकी औषधीय खेती की जा रही है। इसकी मार्केटिंग के लिए किसानों ने मां दंतेश्वरी हर्बल समूह का गठन किया है। यह समूह किसानों को आर्थिक रूप से समृद्ध करने का भी काम कर रहा है। बस्तर के स्टीविया की मांग दूसरे कई देशों में भी बढ़ रही है। कई विदेशी कंपनियां स्टीविया का इस्तेमाल दवा बनाने के लिए कर रही हैं।
शक्कर से तीन सौ गुना ज्यादा कुदरती मिठास देने वाली पराग्वे (अमेरिका) मूल की फसल स्टीविया की खेती से अब यहां के किसान भी अच्छी कमाई करने लगे हैं। स्टीविया के पौध एक बार लगाने पर पांच साल तक फसल देते हैं। हर दो महीने पर इसकी पत्तियां तोड़कर सुखाने के बाद 80 से 100 रुपये प्रति किलो के भाव से किसान इसे बाजार में बेच देते हैं। यह मिठास एक प्राकृतिक विकल्प है। इसमें अनेक औषधीय गुण और जीवाणुरोधी तत्व हैं। स्टीविया शरीर में चीनी की तरह दुष्प्रभाव भी नहीं डालता। शुरुआती दौर में स्टीविया के पौधों में थोड़ी कड़वाहट थी, लेकिन सीएसआइआर और दंतेश्वरी समूह ने मिलकर नई प्रजाति तैयार की। इससे इसकी कड़वाहट अब बेहद कम हो गई है।