बिलासपुर के तिफरा क्षेत्र में स्थित प्रदेश का एकमात्र ब्रेल प्रिंटिंग प्रेस पाठ्यपुस्तकों के साथ धार्मिक किताबें भी छाप रहा है। इसमें गीता, रामचरित मानस और रामायण जैसी किताबें छापी जा रही हैं। हिंदी साहित्य की किताबों का प्रकाशन पहले से किया जा रहा है।
खास बात ये कि प्रदेश के किसी भी कोने से मांग आने पर उन्हें फ्री में किताबें भेजी जाती हैं। यह संभव हो सका नार्वे से अत्याधुनिक ब्रेल प्रिंटिंग मशीन की वजह से। इसलिए कोर्स के अलावा साहित्य और धार्मिक किताबों का लाभ दृष्टिहीनों को मिलने लगा है। केंद्र सरकार देश के जिन 16 प्रिंटिंग प्रेसों को मार्डन व स्टैंडर्ड बनाना चाहती है, उसमें यह भी शामिल है। पहले जिस मशीन में छपाई होती थी, उसकी क्षमता कम होने की वजह से ब्रेल बुक्स की डिमांड पूरी नहीं हो पाती थी। इसे देखते हुए नार्वे से प्रिंटिंग मशीन खरीदने का निर्णय लिया गया। आज उसी मशीन से तमाम पुस्तकों की छपाई हो रही है। यहां के मशीन द्वारा,राजीव गांधी शिक्षा मिशन के भी आर्डर पूरे हो रहे हैं। बिलासपुर में पुस्तकें छापने के अलावा बाइडिंग भी की जा रही है।


प्रेस से दृष्टिबाधित शिक्षकों को भी मुफ्त किताबे दी जाती हैं, जो ब्रेल में पढ़कर सामान्य बच्चों को पढ़ाते हैं। उन्हें साहित्य से जोड़े रखने के लिए साहित्यिक किताबें भी छापी जाती हैं। ई-लाइब्रेरी में 11000 पुस्तकों का संग्रह है। यूजर आईडी और पासवर्ड लेकर कोई भी इन किताबों का अध्यध्यन कर सकता है। इसमें कोर्स के अलावा सामान्य ज्ञान, साहित्य, कविताओं की किताबें भी है। इस तरह प्रेस में आधुनिक तकनिकाें का इस्तेमाल भी बखूबी हो रहा है। उन्हें ज्यादा से ज्यादा सुविधा देने के प्रयास किए जा रहे हैं। प्रेस ने दो साल के संघर्ष बाद ब्रेल कैलेंडर भी बनाया है। मोटे कागज पर उभरे हुए डाट्स को उंगलियों से महसूस कर दिन, तारीख और महीने को समझा जा सकता है। यहां से 13 संस्थाओं को यह कैलेंडर मुफ्त में भेजा जाता है। देश के किसी भी कोने से कोई भी दृष्टिहीन इसे मुफ्त में मंगवा सकता है। बताया गया कि पहले ब्राइलो 600 एसआर मशीन से 1800 पेज प्रति घंटे की छपाई हो पाती थी, लेकिन नई मशीन आने से इसकी रफ्तार बढ़ गई। अब हर घंटे 2200 से 2500 पेज की छपाई हो रही है। इस मशीन से एक साथ चार पेज छपकर निकलते हैं।इससे किताबों की छपाई आसान हो गई है। इससे देशभर से आने वाले आर्डर को पूरा करने में भी ज्यादा समय नहीं लग रहा। माना जा रहा है कि प्रेस में छप रही धार्मिक किताबों से दृष्टिहीनों में धर्म के प्रति जागरूकता आएगी।