छत्तीसगढ़ की सबसे कम उम्र की सरपंच – रितु पंड्राम
27 वर्ष के अल्पायु में रितु पंड्राम एक रोल मॉडल हैं और एक दूरदर्शी मानसिकता वाली एक शिक्षित व्यक्ति जो कि समाज में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए प्रयासरत है। 2015 में गुरु घासीदास विश्वविद्यालय से बायोटेक्नोलॉजी में अपना पोस्ट ग्रेजुएशन पूरा करने के बाद , बिलासपुर जिले के गोरेला ब्लॉक के अंतर्गत आदिवासी बहुल सरबाहरा ग्राम पंचायत के सरपंच के रूप में नियुक्त हुई। 23 वर्ष में वह छत्तीसगढ़ की सबसे कम उम्र की सरपंच बनी और आज अपने गांव में और लोगों के जीवन में बदलाव लाने के लिए कई मुद्दों पर काम कर रही है।
सरपंच के रूप में चुने जाने के बाद, रितु ने पाया कि गाँव के सरकारी स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता ठीक नहीं थी। इस वजह से उसने खुद से ही अपने खाली समय के दौरान गाँव में बच्चों को पढ़ाना शुरू किया। प्रारंभ में, केवल कुछ ही छात्र उसके पास आते , लेकिन समय के साथ, उसके द्वारा पढ़ाए जाने वाले छात्रों की संख्या में वृद्धि हुई, और बाद में सरपंच ने गाँव के आंगनवाड़ी में कक्षाएं संचालित करना शुरू कर दिया।
वह बताती है ”बुनियादी शिक्षा किसी भी छात्र के भविष्य और कैरियर की नींव है, इसलिए मैंने गांव में छात्रों को पढ़ाना शुरू किया। मैं अभी भी उन्हें पढ़ाती हूं और लगातार चल रही गतिविधियों का जायजा लेने के लिए गांव के स्कूलों में जाती हूं। जब मुझे सरपंच के रूप में चुना गया, तो ग्रामीणों ने अपने बच्चों को पढ़ाई के लिए प्रेरित करना शुरू किया और अपनी बेटियों को शिक्षित करने पर ध्यान केंद्रित करना शुरू कर दिया। यह सोच के अच्छा लगता है कि मैं ग्रामीणों को प्रेरित कर सकी और अपने बच्चों को शिक्षा पर ध्यान केंद्रित करने के लिए प्रोत्साहित कर पायी ।
एक अन्य क्षेत्र जहां रितु चीजों को सही करने के लिए काम कर रही है, वह है गांव में व्याप्त शराब पर अंकुश लगाना। युवा सरपंच ने महसूस किया कि क्षेत्र के लोग विशेषकर युवा शराब के शिकार हो रहे हैं। इसलिए उसने इलाके की महिलाओं के साथ मिलकर परिवार और समाज पर शराब के दुष्प्रभाव को उजागर करने के लिए डोर-टू-डोर अभियान चलाया। रितु कहती हैं, “हालांकि यह कहना सही नहीं होगा कि हम इस क्षेत्र में शराब की खपत के प्रतिशत में कमी लाने में कामयाब रहे हैं, लेकिन इस अभियान ने क्षेत्र में बड़े बदलाव लाए हैं।”इनके अलावा, जिन अन्य मुद्दों पर वह काम कर रही हैं उनमें स्वच्छता, कुपोषण से निपटने के उपाय, खेती के लिए जल प्रबंधन आदि शामिल हैं।
ग्रामीणों के कल्याण के लिए अपने अभियान को जारी रखते हुए, उन्होंने स्वच्छ भारत मिशन के तहत शौचालय बनाने के लिए परिवारों को प्रोत्साहित किया। रितु अपने अधिकार क्षेत्र में आने वाले कुपोषित बच्चों के बारे में सर्वेक्षण भी करती है और उनकी बेहतरी के लिए आवश्यक कदम उठाने के लिए जानकारी जुटाती है।
रितु का कहना है “मैं गाँव के लोगों के लिए बेहतर आजीविका सुनिश्चित करने के लिए काम करने वाला एक साधारण सामाजिक कार्यकर्ता हूँ। यह समाज के प्रति मेरी जिम्मेदारी है क्योंकि मेरा मानना है कि माता-पिता के साथ-साथ समाज भी किसी भी व्यक्ति के विकास और सफलता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।”