कविता दीक्षित- खेल चरित्र का निर्माण नहीं करता खेल चरित्र को व्यक्त करता है!
श्रीमती कविता दीक्षित खेल व्यक्तित्व का एक आदर्श उदाहरण है। उनका मानना है कि जो सच्चे मायने में विनर्स है वह ट्रेनिंग में आस्था रखते है और लूज़र्स शिकायत करते है बस। यह वह उद्धरण है जो एक स्पोर्ट्स पर्सन के लिए सबसे फिट बैठता है।
पिछले 40 वर्षों से बैडमिंटन खिलाड़ी होने के नाते, वह अपने क्षेत्र की एक आदर्श वाक्य है। उनकी माँ एक बैडमिंटन खिलाड़ी थीं और इसलिए बचपन से ही उन्हें इस खेल के लिए बहुत प्यार था। कविता बताती है कि 1977 में उन्होंने खेलना शुरू किया और जूनियर वर्ग में अपनी पहली स्टेट चैम्पियनशिप जीती। 1979 में 2 साल के अंतराल के बाद उन्होंने फिर से खेलना शुरू किया और अपने स्कूल से राष्ट्रीय चैम्पियनशिप के लिए चुनी गई, फिर 1980 में मध्य प्रदेश की जूनियर टीम के लिए चुनी गयी ।
इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।1980 में अपनी पहली जिला चैम्पियनशिप में उसने वरिष्ठ खिलाड़ियों को हराया। वे मध्य प्रदेश की सीनियर स्टेट चैंपियन भी रह चुकी है ।उन्होंने 1986 में रूस के खिलाफ अपना पहला अंतरराष्ट्रीय मैच खेला। 1987 में स्पोर्ट्स कोटा के तहत लाइफ इंश्योरेंस कॉर्पोरेशन में शामिल हुईं। वह ऑल इंडिया पब्लिक सेक्टर चैंपियन, ऑल इंडिया इंटर इंस्टीट्यूशन चैंपियन और पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय रायपुर की पूर्व क्षेत्र चैंपियन भी रह चुकी है । वह सीनियर वर्ग में पिछले 10 साल से विश्व बैडमिंटन चैंपियनशिप में भारत का प्रतिनिधित्व कर रही हैं, 2007 में ताइपेई, ताइवान में 2009 में स्पेन में, 2011 कनाडा में, 2013 तुर्की में, स्वीडन में 2015 में इत्यादि ।
कविता 1984 से बच्चों को मुफ्त कोचिंग दे रही हैं। वह रायपुर की एकमात्र महिला कोच हैं।अपने संघर्ष के बारे में बात करते हुए वह बताती है बिना किसी कोचिंग के केवल अपने अभ्यास और जुनून के माध्यम से इस खेल में उभरी है । यहां तक कि वह बिना किसी प्रायोजन के वित्तीय मुद्दों से भी गुजरी है। उनके माता-पिता ने ही उनके खेल में निवेश किया। इस तरह के समर्पण और कड़ी मेहनत के साथ उन्होंने सफलता प्राप्त की ।