दंतेवाड़ा का पोषण पुनर्वास केंद्र
प्रत्येक बच्चे का स्वास्थ्य और समग्र कल्याण एक बेहतर कल के लिए आवश्यक तत्व है। इसे ध्यान में रखते हुए, यूनिसेफ के सहयोग से केंद्र सरकार ने देश भर में पोषण पुनर्वास केंद्र की स्थापना की है।यहां छह महीने और पांच साल की उम्र के बीच के बच्चे हैं, जो तीव्र कुपोषण से पीड़ित हैं, उनका गहन और केंद्रित भोजन के माध्यम से इलाज किया जाता है । छत्तीसगढ़ भी कुपोषण के क्षेत्र में चुनौतियों का सामना कर रहा है । छत्तीसगढ़ प्रशासन के लिए, नक्सल प्रभावित क्षेत्रों कुपोषण के खिलाफ लड़ाई एक और बड़ी चुनौती है । फिर भी, पूरे छत्तीसगढ़ में 79 पोषण पुनर्वास केंद्र का महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा है।सर्वजीत मुखर्जी राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के जिला कार्यक्रम प्रबंधक के अनुसार, दंतेवाड़ा का कुपोषण केंद्र बस्तर संभाग में सर्वश्रेष्ठ है और महत्वपूर्ण मामलों को सफलतापूर्वक संभाल रहा है। 2011 में जिला स्वास्थ्य केंद्र के परिसर में ही 10-बेड की सुविधा के साथ शुरू किया गया यह केंद्र आज के दिन 20-बेड केंद्र में एक नए लोकेशन में विकसित हो गया है।
यहां के डायटीशियन चंद्रकिरण सिन्हा का कहना है कि केंद्र में आने वाले 90 प्रतिशत बच्चे आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं द्वारा लाए जाते है।यहां वे बच्चे को स्क्रीन करते हैं और श्रेणियों में डालते हैं। वे उन्हें विशिष्ट वस्तुओं को खिलाकर भूख परीक्षण करते हैं। इसके आधार पर, वे तय करते हैं कि उन्हें किस आहार पर रखा जाए। उदाहरण के लिए, यदि बच्चा परीक्षण में 80 प्रतिशत आहार का सेवन करता है, तो उसे सीधे चरण 2 आहार पर रखा जाता है, जो कि कैच-अप आहार और दूध आधारित आहार है। भूख परीक्षण में विफल रहने वाले बच्चों को एक स्टार्टर आहार पर रखा जाता है, जो दूध आधारित उत्पादों पर अधिक ध्यान केंद्रित करता है और इसमें मूरी भी शामिल हैं। बच्चों और एक अभिभावक, आमतौर पर माँ, दो सप्ताह की अवधि के लिए केंद्र पर रहते हैं जहाँ बच्चे के आहार की निगरानी रखी जाती है और उसका वजन 15 प्रतिशत बढ़ाने का प्रयास किया जाता है। इस अवधि का उपयोग अभिभावकों के परामर्श के लिए भी रखा जाता है कि वे पर्याप्त पोषण कैसे बनाए रखें।
2011 में शुरू होने के समय से, दंतेवाड़ा केंद्र में लगभग 1600 बच्चों का इलाज किया जा चूका है, जिसमें लगभग 70 प्रतिशत सफलता की कहानियां हैं जहां बच्चे के वजन और स्वास्थ्य में काफी सुधार हुआ है। जिले में कुपोषण के लिए साल दर साल के आंकड़े में भी कमी आई है ।