रायपुर की रेशमा पंडित का जन्म एक संगीत परिवार में हुआ था। पिता ने बचपन से ही तबले पर उसके हुनर को पहचान लिया और उसे औपचारिक प्रशिक्षण दिलवाया। उसने भारत और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई प्रदर्शन दिए हैं।
तबला वादक रेशमा मानती है कि संगीत शब्दों से ज्यादा प्रभावी होता है। 27 वर्ष के अल्प आयु में, उसने वाद्य यंत्र संगीत के क्षेत्र में अग्रणी भूमिका निभाई है। संगीतकारों के परिवार में पले बढ़ने के कारण उसका बचपन से ही संगीत के प्रति रुझाव था । वह इस क्षेत्र में अपने परिवार की पांचवीं पीढ़ी है। 7 साल की उम्र में, उसने तबला सीखना शुरू कर दिया। उनके पिता ऑल इंडिया रेडियो में तबला वादक हैं और माँ कथक नृत्यांगना हैं। उन्होंने भरतनाट्यम सीखा और 2.5 साल तक सितार भी सीखा है। उन्होंने 12 साल की उम्र में अपना पहला प्रदर्शन “बेगानी स्मृति संगीत समारोह” में अपने पिता और दादा के साथ किया था और यह 3 पीढ़ियों का एक साथ प्रदर्शन था।
रेशमा सांस्कृतिक इतिहास में पीएचडी कर रही है। रेशमा बताती है कि उसने कई प्रसिद्ध प्लेटफार्म जैसे “नई दिल्ली में संगीत नाटक अकादमी”, “जालंधर में संगीत कला मंच”, “सिरपुर (छत्तीसगढ़) महोत्सव”, “भोपाल में युवा संगीत समारोह” और कई अन्य कार्यक्रमों में प्रदर्शन किया है। उसे युवा मामलों और खेल मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा चीन में प्रदर्शन करने के लिए भी चुना गया । उसने हाल ही में ग्रैमी और पद्म विभूषण से सम्मानित पं श्री विश्व मोहन भट्ट के साथ संगीत समारोह, उदयपुर में प्रदर्शन किया ।
उन्हें नाटक अकादमी अवार्ड”, “युवा खोज पुरस्कार”, “चक्रधर अवार्ड्स”, “अखिल भारतीय विश्वविद्यालयों की प्रतियोगिता विजेता एसोसिएशन की तिरुपति “, “राज्य गौरव महिला सम्मान” जैसे पुरस्कार से सम्मानित किया गया है । उसे वर्जीनिया अकादमी से नौकरी का प्रस्ताव भी मिला था लेकिन उसके राष्ट्र के प्रति प्रेम ने उसे जाने नहीं दिया। उसका संगीत आने वाले कई वर्षों तक हमें रोमांचित करता रहेगा। भारतीय शास्त्रीय संगीत में लिंग बाधाओं को तोड़ती हुई रेशमा का मानना है कि ऐसा कोई काम नहीं है जो एक महिला नहीं कर सकती, तो आगे बढ़ो और लिंग बाधाओं को दूर करो।