Mrs.Uma Tiwari, Director, Mother’s Pride Senior Secondary School
श्रीमती उमा तिवारी जी
शिक्षा – एम.ए. (अंग्रेजी), एम.ए. (हिन्दी), बी.एड., एल.एल.बी.
परिचय – प्राचार्या, मदर्स प्राईड सीनियर सेकेण्डरी स्कूल, खम्हरिया (मोतीपुर), रायपुर (छ.ग.)
उमा तिवारी, डायरेक्टर, मदर्स प्राईड सीनियर सेकेण्डरी स्कूल, खम्हरिया, रायपुर द्वारा शिक्षा के क्षेत्र से सन् 1990 से ही जुड़ी हुई है। उमा जी ने सर्वप्रथम 1990 में नर्सरी शिक्षिका के रूप में अपने कैरियर की शुरूआत की थी । तत्पश्चात टीजीटी एवं पीजीटी के रूप में अध्यापन करते हुये, प्राचार्या के पद पर शक्ति कान्वेंट स्कूल में पदस्थ हुई। सन् 1994 में अपना स्वयं का विद्यालय स्थापित कर शिक्षा के क्षेत्र में पूरी तरह से समर्पित होकर अपना कार्य प्रारंभ किया इन्होंने ।उस समय से ही शिक्षा के क्षेत्र में समाज को योगदान देे रही है उमाजी ।
• वे बताती है,” कुछ परिवारिक परेशानियाँ आई पर मेरे पति का पूर्णतः सहयोग था जिसके वजह से मैं इतना आगे बढ़ पाई। 2003-04 में मदर्स प्राईड स्कूल के नाम से अपना स्कूल खोले एवं नित नये मुकाम हासिल करते हुये आज मदर्स प्राईड के तीन सीनियर सेकेण्डरी स्कूल, एक सीबीएसई बोर्ड दिल्ली से मान्यता प्राप्त है एवं दो स्कूल छत्तीसगढ़ बोर्ड से संचालित है , एक आरंग एवं एक सुंदर नगर से संचालित हो रहा है। दो अन्य स्कूल मिडिल स्कूल तक संचालित हो रहा है ,एक रसनी में एवं एक प्रोफेसर कालोनी, रायपुर में हैं। कुल 4000 छात्र-छात्राये अध्ययनरत् हैं। उमाजी को शिक्षा के क्षेत्र में उत्कृष्ठ योगदान के लिए कई संगठनों द्वारा समानित किया जा चुका है।
“वैसे तो शिक्षा के क्षेत्र को मैने अपनी इच्छा से चुना है तो बच्चों और स्कूल से जुड़ी सभी बातें बहुत सरल लगती हैं और साथ ही परिवार का पूरा सहयोग होने के कारण मुझे कठिनाइयाँ महसूस नहीं हुई ।”
जिंदगी की सबसे बड़ी कठिनाई मेरे पति के मृत्यु से आई मुझे लगा मै चेतना शुन्य हो गई और अब आगे जीना ही नहीं हैं परंतु ऐसा कहां संभव होता हैं मेरे सामने मेरे बच्चे और स्कूल था अतः धीरे-धीरे अपने आप को सामान्य करने की कोशिश करने लगी।
मैंने हमेशा से ही परिवारिक जीवन और कार्य में सामंजस्य बनाने का प्रयास किया है। मेरे दो बच्चे है – कृष्ण वत्सला बेटी आर्किटेक्चर की छात्रा है एवं आदित्य कृष्ण बेटा बी.ए. (एल.एल.बी.) दोनों ही अध्ययनरत् हैं। बच्चे भी मेरा सहयोग करते हैं रविवार का समय पूरा बच्चों को देती हूं और रात का खाना हम एक साथ ही खाते हैं।एक मा होने के नाते कभी-कभी मन छोटा हो जाता है। मैं उतना समय नहीं दे पाती बच्चों को जितना देना चाहिए पर फिर भी मेरे बच्चें समझते है।
आज के समय में भी एक औरत के लिये जिंदगी बहुत कठिन है। समाज में अभी भी हमें एक कार्यरत महिला के रूप में स्थान बनाने में काफी समय लगता है। एक औरत के लिये काम करना दस गुना कठिन है पुरूषों के मुकाबले आज भी, पर इन सबसे संघर्ष करके महिलायें हर क्षेत्र में सफलता के झंडे गाढ़ रही है।
मेरा महिला दिवस पर यह सन्देश है कि परिस्थितियाँ चाहे कुछ भी हो जाये हमें सिर्फ आगे बढ़ने की सोचना चाहिये अगर लक्ष्य के लिये अडिग है व अपने पर भरोसा हैं तो कभी पीछे मुड़कर देखने की जरूरत नहीं होती है।औरतें ज्यादा समर्पित होती है अपने काम के लिये अतः कभी कितना ही कठिन परिस्थिति हो हिम्मत नहीं हारिये। धीरे-धीरे स्थिति सामान्य होती है। पर लक्ष्य पर डटें रहे। जब तक शुरूवाती दौर में होते हैं किसी काम या नये विचार का तो हर तरफ से विरोध व निंदा का सामना करना पड़ता है परंतु अगर इरादा दृढ़ हो तो बाद में सब साथ देतें हैं। आत्म विश्वास ही सबसे बड़ा साथी हैं।