कानपुर के आईआईटीअन देवेश चौबे जांजगीर-चांपा की ‘आकांक्षा’ योजना से जुड़कर सरकारी स्कूल के बच्चों को कोचिंग दे रहे हैं। उनका कहना है कि हरेक विद्यार्थी खास होता है। जरूरत है तो केवल उसे तराशने की। यही काम वे कर रहे हैं। उनके साथ पढ़े कई दोस्त मल्टीनेशनल कंपनी में जॉब कर रहे हैं, लेकिन देवेश को तो यहीं खुशी मिलती है।
उत्तरप्रदेश मे एक छोटा से गांव के है , देवेश ,आईआईटी कानपूर से मैन्यूफेक्चरिंग एंड मटेरियल इंजीनियरिंग में मास्टर डिग्री हासिल की। बीटेक करने के बाद कोटा में मोशन एजुकेशन एकेडमी ज्वाइन की। यहीं बच्चों को फिजिक्स पढ़ाने का सिलसिला शुरू हुआ। जांजगीर-चांपा में चलाई जा रही आकांक्षा योजना होनहारों के लिए फायदेमंद है। आज छत्तीसगढ़ सरकार फ्री में कोचिंग दे रही है। हॉस्टल का खर्च उठा रही है। जिला पंचायत परिसर में आकांक्षा परियोजना के तहत लड़के-लड़कियों का अलग हॉस्टल है। यहां पढ़ाई के अलावा उनकी सेहत का भी ध्यान रखा जाता है।
देवेश कहते हैं कि प्राचीन समय में गुरुकुल की परंपरा थी। बच्चे अपने मां-बाप से दूर रहकर पढ़ाई किया करते थे। आकांक्षा के जरिए इसी परंपरा ने मूर्तरूप लिया है। सप्ताह में छह दिन पढ़ाई के बाद सातवें दिन रविवार को परिजन आते हैं और बच्चों से मिलकर लौट जाते हैं। हम खुद बच्चों के साथ हॉस्टल में रहते हैं। मैंने तो हरेक बच्चे से कहा है कि जब भी किसी सवाल को लेकर डाउट हो उसे फौरन पूछें। बच्चे टैलेंटेड हैं। मुझे विश्वास है कि इस बार यहां के ज्यादा से ज्यादा बच्चों का इंजीनियरिंग और मेडिकल कॉलेजों में दाखिला होगा।
देवेश का कहना है “मैं अपने भाई-बहन को भी इंजीनिरिंग और मेडिकल की पढ़ाई के लिए प्रेरित करता हूं। आज मेरा परिवार आगरा में रहता है और मैं उनसे दूर हूं, लेकिन आकांक्षा के बच्चों से मिलने के बाद इस दूरी का एहसास नहीं होता। यह भी मेरा परिवार है और मेरी पूरी कोशिश है कि मैं अपना शत-प्रतिशत यहां दूं।”