योग विशेषज्ञ – अर्जुन चौधरी
जब लोग मुझसे कहते हैं की योग के बारे में कुछ कहे या लिखें तब मेरी सबसे बड़ी समस्या यह होती है कि जब तक कोई मुझसे योग के बारे में कुछ कहने यह लिखने को नहीं कहता तब तक मुझे सब पता रहता है परंतु जैसे ही लिखने या कहने जाता हूं मेरे भीतर सब गायब होने लगता है।
पर अगर कुछ कहने या लिखने के लिए कहा गया है तो उसे शब्दों में उतारने के लिए मेरी पलकें गिर जाती है आंखें बंद हो जाती है अंदर शून्य सा अनुभव बन जाता है और अब तक जो मैं स्वयं योग का अभ्यास कर रहा हूं और दूसरों को करवा रहा हूं उसकी याद में डूबता जाता हूं और उन अनुभवों और स्मृतियों से मैं योग के बारे में कुछ शब्द आज विश्व योग दिवस के उपलक्ष में प्रस्तुत कर रहा हूं।
योग क्या है? या योग की परिभाषा क्या है? इस तरह के कई सवालों के जवाब हमें फिलॉसफी की तरफ शब्दों के सुंदर संसार में ले जाकर एक सुखद दिमागी यात्रा पर ले जा सकते हैं पर आज के इस विश्व योग दिवस अवसर पर थोड़ी वर्तमान समय और परिस्थितियों के आधार पर हम योग के अभ्यास और साधना को देखने की कोशिश करते हैं।
योग किस लिए हैं?और हम इसका अभ्यास किस लिए कर रहे हैं? हम तो बस चाहते हैं कि योग के अभ्यास से हमारा शरीर लचीला हो जाए, बीमारी से हम मुक्त हो जाए, हमें अपना सही वजन मिल जाए और हम स्वस्थ हो जाए, उच्च से उच्च आसनों को करके लोगों की तारीफें सोशल मीडिया पर बटोर सके और ऐसी कई अन्य वजह हैं जिसके कारण हम योग की तरफ आकर्षित होते हैं। कई बार तो हम अपनी लाइफ से इतना बोर हो जाते हैं की योग के अभ्यास तक में मनोरंजन तलाशते है और ऐसा नहीं है कि वह मनोरंजन आपको मिलता नहीं है आजकल अधिकतर जगहों पर योग को मनोरंजन के रूप में भी प्रस्तुत किया जा रहा है। परंतु योग का मनोरंजन के लिए अभ्यास करना या योग के अभ्यास में मनोरंजन की तलाश करना अंततः हमें फिर वही उसी बोरियत की स्थिति में ले जाता है जहां से हम आए हैं।
आज के समय में योग का अभ्यास इस तरह के लक्ष्य की प्राप्ति के लिए करना ऐसा ही है जैसे आप किसी ऐसे इंजन से जो कि हवाई जहाज को आसमान की ऊंचाइयों में ले जाने के लिए बना है उससे कार या बाइक चलाने का काम ले रहे हैं। माना की कार या बाइक की रफ्तार, क्षमता और शक्ति कई गुना बढ़ जाएगी इस इंजन से पर वह रहेगा तो जमीन पर ही, ऊपर तो नहीं उठ सकेगा।
महर्षि पतंजलि का नाम योग का पर्याय बन चुका है और वह होना सही भी है क्योंकि उन्होंने जिस तरह से योग को उसके रहस्यो को लिपिबद्ध करके योग सूत्रों के रूप में लिखा है वह इस तरह से है कि ना तो उसमें से एक लाइन आज तक अतिरिक्त जोड़ी जा सकी और ना आगे जोड़ी जा सकेगी और ना ही उसमें से एक अतिरिक्त शब्द बाहर निकाला जा सकता है ।सब कुछ इतना सटीक इतना सुव्यवस्थित है कि हमें विश्वास ही नहीं होता ऐसी बुद्धि का व्यक्ति शरीर के रूप में होगा।
यही महर्षि पतंजलि की आफत या समस्या है कि उन्होंने जिस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए अपने से पहले जितने भी योग पर प्रयोग हुए हैं उसे योग सूत्रों के रूप में लिपिबद्ध किया वो लक्ष्य आज जनसाधारण के योगाभ्यास से कहीं विलीन होता जा रहा है और जिस तरह से लोग योग का अभ्यास करते हैं उसे देख कर महर्षि पतंजलि को भी सिर के बल खड़ा होना पड़ेगा।
वैसे इसमें योग अभ्यास सीखने वाले साधारण जन समूह की भी गलती नहीं है क्योंकि ताली दोनों हाथों से बजती है। जब हम योग को जानने के लिए,उसे शरीर, सांसों और ऊर्जा के स्तर पर अनुभव करने का लक्ष्य रखकर योगाभ्यास सीखते हैं या करते हैं तो वह सारे लाभ जो शरीर और रोगों के आधार पर हमने सुन रखा है कि योग से प्राप्त होते हैं वह हमें प्राप्त होने लगते हैं।
योग का अभ्यास आप स्वयं करें या किसी अनुभवी योग साधक के निर्देश में करें इस बात का अवश्य ध्यान रखें कि आपका योगाभ्यास केवल एक या दो घंटे की सुबह या शाम की योग क्लास नहीं बल्कि आपका योगाभ्यास आपके उठने,बैठने, चलने,भोजन करने की कला स्नान करने का ढंग,शरीर से अशुद्धियां निकालने का ढंग, श्वास लेने छोड़ने का तरीका,नींद में शरीर को ले जाने का ढंग इन सब को शामिल करता हो।
क्योंकि योग जब तक आपकी क्लास से निकलकर आपके रोजमर्रा की जिंदगी में शामिल नहीं होगा तब तक उसका असर,उसका प्रभाव और उसके फल केवल आपको बाहरी सीमा पर ही घूमाते रहेंगे,योग के केंद्र पर आप पहुंच नहीं पाएंगे जहां आपका शरीर,मन,सांसे और आपके भीतर की ऊर्जा,जिसकी वजह से आप जीवित है और बहुत अच्छी तरह से जीवन को अनुभव भी कर रहे हैं, यह चारों आपस में एक गहरे तालमेल में होते हैं।
योग के अभ्यास को धीरे-धीरे अपनी दैनिक दिनचर्या का हिस्सा बनाकर हम अपने स्वास्थ्य को इस स्तर पर ले जाते हैं जहां इस शरीर में रहना एक समस्या नहीं होती और आपके आसपास के संसार का अनुभव सुखद और शांति प्रिय होने लगता है।