छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा राज्य में एचआईवी और एड्स पीड़ितों के लिए नोडल अधिकारी रह चुकी है ट्रांसजेंडर अमृता सोनी। पुणे के सिंबॉयसिस से मानव संसाधन में एमबीए करने वाली अमृता सोनी एचआईवी और एड्स पीड़ितों के लिए आयोजित होने वाले चिकित्सा शिविरों का कामकाज देखने के लिए नियुक्त की गयी थी।
अमृता बताती है कि उन्होंने मॉडलिंग की, किन्नरों की तरह परंपरागत रूप से नाच-गाकर भीख माँगी, सेक्स वर्कर के तौर पर काम किया, लेकिन आख़िर में उस दलदल से निकल गयी।वे बताती है उनका बचपन बड़ा कष्ठदायी था। उन्हें घर से निकाला गया। वे वहा से पुणे गयी जहां उनकी मुलाक़ात कुछ समलैंगिक लोगों से हुई। अमृता कशिश भालके जैसे लोगो से मिली जो आज ट्रांसजेंडर लोगों के लिए काम कर रहे हैं।घर वालों से कोई संपर्क नहीं बचा था। जामिया मिलिया इस्लामिया से ग्रेजुएशन पूरी की और साथ ही तुग़लक़ाबाद रोड में पीसीएल नामक एक कॉल सेंटर में काम किया। दिन में कॉलेज जाती और रात को कॉल सेंटर।
अमृता बताती है कि एमबीए के पश्चात वह मैत्री फ़ाउंडेशन की मीरा शान से मिली और अंततः उन्होंने फ़ाउंडेशन में ट्रांसजेंडर लोगों के लिए काम करना शुरू कर दिया। उसके पश्चात एक दूसरी संस्था में स्टेट कम्युनिटी एडवाइज़र के तौर पर ट्रांसजेंडर मैपिंग का काम शुरू किया। महिला सेक्स वर्कर, एचआईवी से पीड़ित बच्चे और ट्रांसजेंडर लोगों के बीच काम का सिलसिला जारी रहा।
अमृता का मानना है कि उन्हें थर्ड जेंडर का दर्जा ज़रुर मिला है और समाज में उनके प्रति बदलाव भी आया है, लेकिन यह बदलाव उतना नहीं है । आज भी अगर ऑटो, बस या ट्रेन में कहीं बैठ जाएं तो पास में कोई नहीं बैठता। उनकी दुनिया बदल रही है, इस दुनिया को भी उनके लिए बदलने की ज़रूरत है।