कुछ साल पहले स्थापित बस्तर हनी, मधुमक्खी पालन को बढ़ावा देने के लिए दंतेवाड़ा में स्थापित किया गया। आज बस्तर हनी इस क्षेत्र में ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के साथ-साथ 15,000-20,000 से अधिक लोगों को आजीविका और वित्तीय स्थिरता प्रदान कर रहा हैं। इनमें से बड़ी संख्या महिलाएं और जनजातीय आबादी हैं।

वहा के मधुमक्खी के रखवाले बताते है कि परंपरागत रूप से, जंगल में जब शहद का उपज किया जाता है , छत्ते को जला दिया जाता है, जिसके परिणामस्वरूप मधुमक्खियों को मार दिया जाता है। लगभग छः साल पहले, छत्तीसगढ़ काउंसिल ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी (सीजीसीओएसटी) की सहायता से, शहद शिकारीयों को प्रशिक्षित करना शुरू किया गया जिससे वे पर्यावरण के अनुकूल प्रथाओं को अपनाने लगे , और मधुमक्खियों को बचाने का प्रयास करने लगे। सीजीसीओएसटी ने उन्हें रिसर्च में भी मदद की जिससे अच्छी पैदावार लाने के लिए सबसे उपयुक्त फसलें और वनस्पति के विषय में बताया गया ।

Bastar Honey

200 से अधिक महिला, दांतेवाड़ा से 800 परिवार, और बीजापुर के लगभग 150 परिवार इस प्रक्रिया,शहद निकालने से लेकर बॉक्सिंग और पैकेजिंग को संभालने तक. में लगे हुए है । बस्तर हनी टीम इन सभी कार्यों में उन्हें प्रशिक्षित करती है और उन्हें प्रबंधन के लिए बक्से देती है।प्रत्येक बॉक्स मधुमक्खियों की एक कॉलोनी है जिसमें एक रानी और 10,000 कार्यकर्ता मधुमक्खी शामिल हैं। मधुमक्खी स्वदेशी सेराना इंडिका प्रजातियों में से हैं। प्रत्येक वर्ष इन बक्से में से लगभग 10 किलोग्राम से 20 किलोग्राम शहद निकलता है। प्रति वर्ष चार से पांच टन शहद जोड़ा जाता है। मधुमक्खी किसानों को 300 रुपये प्रति किलोग्राम शहद का भुगतान किया जाता है।

हाल ही में, बस्तर हनी टीम ने मेलीफेरा प्रजातियों के मधुमक्खियों का प्रयोग करना शुरू किया है।इस प्रजाति के साथ एक बॉक्स प्रति वर्ष 25-35 किलो शहद तक बना सकता है, लेकिन इनमे अधिक पराग और अमृत की आवश्यकता होती है। सीजीसीएसटी इन्हे आदर्श परिस्थितियों का शोध करने में मदद कर रहा है, जिसके तहत इन मधुमक्खियों का विकास भी हो सके । इस बीच खादी ग्रामोद्योग ने मधुमक्खी पालन के अधिकार के तहत 78 आदिवासी खेती परिवारों को मैलीफेरा मधुमक्खियों के 10 बक्से का प्रबंधन करने के लिए दिया है।वर्तमान में उत्पाद डिस्ट्रीब्यूटर्स तथा ऑनलाइन चैनलों के माध्यम से बस्तर हनी टीम द्वारा विपणन और बेचा जा रहा है।
उनके पास जिला प्रशासन से पर्याप्त समर्थन है, जो एक नया बॉक्स स्थापित करने की लागत का 80 प्रतिशत देते है, लागत लगभग 16,000 रुपये है। बक्से उन परिवारों को दिए जाएंगे जिन्हें अंत तक प्रक्रिया में प्रशिक्षित किया जाएगा। बस्तर हनी जो भी उत्पादित होता है उसे खरीदता है और इसे बाजार में बेचने में मदद करता है। यह चैनल दो साल तक काम करेगा, जिसके बाद बक्से का स्वामित्व उन्हें प्रबंधित करने वाले लोगों को सौंप दिया जाएगा। भले ही कम पैदावार हो वे लोगों को आमदनी के निरंतर स्रोत द्वारा प्रोत्साहित करना चाहते हैं।
छत्तीसगढ़ यात्रा के दौरान प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने बस्तर हनी के स्वाद की सराहना की और खरीदा भी ।